टैरिफ़ एक प्रकार का कर या शुल्क है जो कोई देश दूसरे देश से आयात होने वाले सामानों पर लगाता है। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी सामानों को महंगा बनाकर घरेलू उद्योगों को सुरक्षा देना, सरकारी राजस्व बढ़ाना और व्यापार घाटे को कम करना है। यह विशिष्ट (मात्रा पर) या मूल्य-वर्धित (मूल्य के प्रतिशत पर) हो सकता है।
इसे को आसान शब्दों में समझें तो यह एक तरह का कर (Tax) या शुल्क (Duty) है, जो एक देश की सरकार दूसरे देशों से आयात (Import) किए जाने वाले सामानों पर लगाती है। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी सामानों को महंगा बनाकर अपने देश के घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना होता है। यह सरकार के लिए राजस्व (Revenue) का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है।
जब कोई कंपनी किसी दूसरे देश से सामान आयात करती है, तो उसे अपनी सरकार को इस शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। इसका सीधा असर उस सामान की अंतिम कीमत पर पड़ता है, जिससे वह घरेलू बाज़ार में महंगा हो जाता है। उदाहरण के लिए, अगर भारत किसी दूसरे देश से 10,000 रुपये का कोई खिलौना आयात करता है और उस पर ये 20% लगाता है, तो आयात करने वाली कंपनी को सरकार को 2,000 रुपये का शुल्क देना होगा। इससे वह खिलौना भारत में 12,000 रुपये का हो जाएगा, जिससे भारतीय बाज़ार में बिकने वाले खिलौनों की तुलना में वह महंगा हो जाएगा।
इसे को कई नामों से जाना जाता है, जैसे सीमा शुल्क, आयात शुल्क, या आयात कर। यह सिर्फ़ आयात पर ही नहीं, बल्कि कुछ खास मामलों में निर्यात (Export) पर भी लगाया जा सकता है, हालाँकि आयात पर लगने वाला ज़्यादा आम है।
टैरिफ़ के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
इसे लगाने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण और उद्देश्य होते हैं, जिन्हें समझना ज़रूरी है।
1. घरेलू उद्योगों की सुरक्षा (Protection of Domestic Industries): यह सबसे प्रमुख और आम कारण है। जब कोई देश विदेशी सामानों पर इसे लगाता है, तो वे सामान घरेलू बाज़ार में महंगे हो जाते हैं। इससे घरेलू कंपनियों द्वारा बनाए गए सामान की कीमत विदेशी सामानों की तुलना में कम हो जाती है। परिणामस्वरूप, लोग अक्सर सस्ते घरेलू सामान खरीदना पसंद करते हैं। इससे घरेलू कंपनियों को ज़्यादा ग्राहक मिलते हैं, उनका उत्पादन बढ़ता है, और वे विदेशी कंपनियों से मुक़ाबला कर पाती हैं। यह विशेष रूप से उन उभरते हुए उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें अभी विकसित होने के लिए सुरक्षा की ज़रूरत होती है।
2. सरकारी राजस्व बढ़ाना (Increasing Government Revenue): ये सरकार के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत होता है। आयातित सामानों की मात्रा और उन पर लगे टेरिफ की दर के आधार पर, सरकार को हर साल अरबों रुपये का राजस्व मिल सकता है, जिसका उपयोग वह सार्वजनिक सेवाओं और विकास परियोजनाओं में कर सकती है।
3. राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security): कुछ देश कुछ खास सामानों के आयात पर इसे लगा सकते हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। जैसे, रक्षा उपकरण, संवेदनशील तकनीक या रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण खनिज। इसे लगाकर वे यह सुनिश्चित करते हैं कि इन सामानों का घरेलू उत्पादन हो और देश अपनी ज़रूरतों के लिए पूरी तरह से दूसरे देशों पर निर्भर न हो।
4. व्यापार घाटे को कम करना (Reducing Trade Deficit): जब कोई देश निर्यात से ज़्यादा आयात करता है, तो उसे व्यापार घाटा (Trade Deficit) होता है। इसे लगाकर सरकार आयात को कम करने की कोशिश करती है, जिससे व्यापार घाटे को कम किया जा सके। हालाँकि, इसका असर यह भी हो सकता है कि दूसरा देश भी बदले में इसे लगा दे, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ सकता है।

टेरिफ के प्रकार (Types of Tariffs)
इसे कई तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है।
- विशिष्ट (Specific Tariff): यह किसी वस्तु की मात्रा या इकाई पर लगने वाला एक निश्चित शुल्क होता है। जैसे, प्रति किलो गेहूं पर ₹5 का या प्रति जोड़ी जूते पर ₹100 का । इसमें सामान की कीमत से कोई लेना-देना नहीं होता।
- मूल्य-वर्धित (Ad Valorem Tariff): यह आयातित वस्तु के कुल मूल्य के प्रतिशत के रूप में लगाया जाता है। जैसे, अगर किसी मोबाइल पर 10% का है और उसकी कीमत 15,000 रुपये है, तो ये ₹1,500 होगा। अगर उसकी कीमत 20,000 रुपये हो जाती है, तो ये ₹2,000 हो जाएगा।
- मिश्रित (Compound Tariff): यह विशिष्ट और मूल्य-वर्धित का संयोजन होता है। इसमें वस्तु की मात्रा पर एक निश्चित शुल्क भी लगता है और उसके मूल्य पर एक प्रतिशत शुल्क भी। जैसे, प्रति टन स्टील पर ₹500 का शुल्क और साथ ही उसके मूल्य पर 5% का टेरिफ।
- प्रतिकारी (Retaliatory Tariff): यह तब लगाया जाता है जब कोई देश किसी दूसरे देश के टेरिफ के जवाब में अपनी वस्तुओं पर भी टेरिफ लगाता है। इसे अक्सर व्यापार युद्ध (Trade War) की शुरुआत माना जाता है।
टैरिफ़ के प्रभाव (Effects of Tariffs)
इसका प्रभाव सिर्फ़ आयातित सामानों तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसका असर पूरे देश की अर्थव्यवस्था और आम लोगों पर पड़ता है।
1. उपभोक्ताओं पर प्रभाव: इसके कारण आयातित सामानों की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को ज़्यादा पैसे चुकाने पड़ते हैं। उनके पास सामान चुनने के लिए कम विकल्प होते हैं और उन्हें कम गुणवत्ता वाले या महंगे सामान खरीदने पड़ सकते हैं।
2. घरेलू उत्पादकों पर प्रभाव: इससे घरेलू उत्पादकों को फ़ायदा होता है, क्योंकि उन्हें विदेशी प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा मिलती है। इससे उनका उत्पादन बढ़ता है और वे ज़्यादा लाभ कमा पाते हैं। हालाँकि, इसका नकारात्मक पहलू यह है कि जब उन्हें प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता, तो वे अपने उत्पादों की गुणवत्ता सुधारने या नए इनोवेशन पर ध्यान देना बंद कर सकते हैं।
3. सरकार पर प्रभाव: जैसा कि पहले बताया गया है, ये सरकार के लिए राजस्व का एक स्रोत होता है। इस राजस्व का उपयोग सरकार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए कर सकती है।
4. वैश्विक व्यापार पर प्रभाव: इससे वैश्विक व्यापार में रुकावट आ सकती है। जब एक देश इसे लगाता है, तो दूसरा देश भी बदले में टेरिफ लगा सकता है, जिससे व्यापारिक संबंध बिगड़ते हैं। इससे दुनिया भर में व्यापार की मात्रा कम हो सकती है और आर्थिक मंदी की स्थिति पैदा हो सकती है।
टैरिफ़ और भारत का संदर्भ
भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए हमेशा से इसका का इस्तेमाल किया है। स्वतंत्रता के बाद भारत में इसकी दरें बहुत ऊंची थीं, लेकिन 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से धीरे-धीरे इसमें कमी की गई। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में, ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों को बढ़ावा देने के लिए कुछ खास क्षेत्रों में इसको बढ़ाया भी गया है।
उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने और कुछ ऑटोमोबाइल पुर्जों पर इसे बढ़ाया गया है ताकि इन चीज़ों का उत्पादन देश में ही हो सके। इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना और रोजगार के अवसर पैदा करना है।
भारत में इसकी की दरें अन्य विकासशील देशों की तुलना में ज़्यादा हो सकती हैं, लेकिन यह भारत के व्यापारिक संबंधों पर भी निर्भर करता है। भारत ने कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements) किए हैं, जिससे उन देशों से आयात होने वाले सामानों पर इसकी दरें कम हो जाती हैं।
टैरिफ़ बनाम गैर- टेरिफ बाधाएं (Tariff vs. Non-Tariff Barriers)
यह समझना ज़रूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सिर्फ़ ये ही एकमात्र बाधा नहीं है। कई बार सरकारें व्यापार को नियंत्रित करने के लिए अन्य बाधाएं भी लगाती हैं।
- गैर-टेरिफ बाधाएं ये वो नियम और प्रतिबंध होते हैं जो शुल्क के रूप में नहीं होते, लेकिन व्यापार को मुश्किल बनाते हैं।
- इनमें आयात कोटा (Import Quotas) शामिल है, जहाँ सरकार किसी विशेष वस्तु के आयात की मात्रा तय कर देती है।
- सब्सिडी (Subsidies) भी एक इसी प्रकार की बाधा है, जहाँ सरकार अपने घरेलू उत्पादकों को वित्तीय सहायता देती है ताकि वे कम कीमत पर सामान बेच सकें।
- इसके अलावा, उत्पादों की गुणवत्ता, सुरक्षा और लेबलिंग से जुड़े कठोर नियम भी इन बाधाओं का हिस्सा होते हैं।
कुल मिलाकर, ये एक शक्तिशाली आर्थिक उपकरण है जिसका उपयोग सरकारें अपनी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने और घरेलू हितों की रक्षा करने के लिए करती हैं। हालाँकि, इसका उपयोग संतुलन के साथ करना ज़रूरी है, क्योंकि इसका अत्यधिक इस्तेमाल व्यापारिक संबंधों को नुक़सान पहुँचा सकता है और वैश्विक आर्थिक सहयोग को बाधित कर सकता है।