आज की वैश्विक व्यवस्था, सूचना के तीव्र प्रवाह और भू-राजनीतिक जटिलताओं के बीच, एक मूलभूत प्रश्न बार-बार उठता है: क्या मानव जाति एक और विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी है? यह सवाल सिर्फ़ अटकलों का विषय नहीं, बल्कि एक गंभीर चिंता का विषय है जो नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और आम नागरिकों को समान रूप से परेशान करता है।
विश्व युद्ध के कगार पर खड़ी है दुनिया? इसका उत्तर सरल ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में नहीं दिया जा सकता, बल्कि इसके लिए गहन विश्लेषण, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं की सूक्ष्म समझ की आवश्यकता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: सबक जो हमने सीखे (या नहीं सीखे)
दो विश्व युद्धों की भयावहता, जिनमें करोड़ों लोगों की जान गई और दुनिया का नक्शा ही बदल गया, ने मानव चेतना पर एक अमिट छाप छोड़ी है। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) की शुरुआत विभिन्न साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच बढ़ते तनाव, हथियारों की होड़ और गठबंधन प्रणाली की जटिलताओं के कारण हुई थी। आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या जैसी एक छोटी सी चिंगारी ने पूरे यूरोप को अपनी चपेट में ले लिया। वहीं, द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) फासीवाद और विस्तारवादी विचारधाराओं के उदय, राष्ट्र संघ की विफलता और तुष्टीकरण की नीति के घातक परिणामों का परिणाम था।
इन युद्धों से हमने सीखा कि अति-राष्ट्रवाद, आर्थिक संरक्षणवाद, और राजनयिक अलगाववाद कितने खतरनाक हो सकते हैं। हमने यह भी सीखा कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और बहुपक्षीय सहयोग की कितनी आवश्यकता है ताकि छोटे विवाद बड़े संघर्षों में न बदलें। संयुक्त राष्ट्र का गठन और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) जैसे समझौते इसी सीख का परिणाम थे। शीत युद्ध के दौरान, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच सीधी सैन्य झड़प से बचने के लिए “आपसी सुनिश्चित विनाश” (Mutually Assured Destruction – MAD) का सिद्धांत एक निवारक के रूप में कार्य करता था, जिससे पता चला कि परमाणु हथियारों का अस्तित्व एक तरफ़ जहाँ विनाशकारी क्षमता रखता है, वहीं दूसरी तरफ़ यह एक अजीबोगरीब संतुलन भी बनाता है।
क्या हमने वास्तव में इन बातों को आत्मसात किया है? वर्तमान वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए यह एक विचारणीय प्रश्न है।
वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य: बढ़ते तनाव के बिंदु
आज की दुनिया में कई ऐसे हॉटस्पॉट और प्रवृत्तियाँ हैं जो वैश्विक संघर्ष की संभावना को बढ़ाते हैं:
- यूक्रेन में चल रहा संघर्ष: रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था को हिला दिया है। यह संघर्ष न केवल नाटो और रूस के बीच सीधा टकराव का जोखिम पैदा करता है, बल्कि यह वैश्विक ऊर्जा और खाद्य बाजारों को भी प्रभावित कर रहा है। पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन को समर्थन और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने ध्रुवीकरण को बढ़ा दिया है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में विश्वास की कमी आई है।
- चीन-ताइवान तनाव और दक्षिण चीन सागर: चीन ताइवान को अपना अविभाज्य अंग मानता है, जबकि ताइवान एक स्व-शासित लोकतंत्र है। इस क्षेत्र में बढ़ता सैन्य जमावड़ा और अमेरिकी नौसेना की उपस्थिति एक संभावित सैन्य टकराव की आशंका को जन्म देती है। दक्षिण चीन सागर में विभिन्न देशों के बीच समुद्री दावों को लेकर भी तनाव बना हुआ है, जो क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है।
- मध्य पूर्व में अस्थिरता: इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष, ईरान का परमाणु कार्यक्रम, और विभिन्न प्रॉक्सी युद्धों ने मध्य पूर्व को दशकों से एक अस्थिर क्षेत्र बनाए रखा है। ये क्षेत्रीय संघर्ष आसानी से बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप को आकर्षित कर सकते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें और भू-राजनीतिक समीकरण प्रभावित होंगे।
- परमाणु हथियार और अप्रसार चुनौती: ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों द्वारा परमाणु हथियार विकसित करने का प्रयास, और रूस द्वारा परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकियाँ, वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करती हैं। परमाणु अप्रसार व्यवस्था दबाव में है, और यदि यह टूटती है, तो परमाणु हथियारों का प्रसार और उनके उपयोग का जोखिम नाटकीय रूप से बढ़ जाएगा।
- आर्थिक प्रतिस्पर्धा और व्यापार युद्ध: संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन जैसी बड़ी शक्तियों के बीच आर्थिक वर्चस्व की होड़ और व्यापार युद्ध, विशेषकर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं। संरक्षणवादी नीतियाँ और आपूर्ति श्रृंखलाओं का विखंडन राष्ट्रों के बीच सहयोग को कम कर सकते हैं और आर्थिक तनाव को सैन्य तनाव में बदल सकते हैं।
- साइबर युद्ध और सूचना युद्ध: आधुनिक संघर्ष अब केवल पारंपरिक युद्ध के मैदान तक सीमित नहीं हैं। साइबर हमले, जो महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को लक्षित कर सकते हैं, और फेक न्यूज़ व दुष्प्रचार के माध्यम से सूचना युद्ध, राष्ट्रों के भीतर और उनके बीच अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। ये अदृश्य युद्ध पारंपरिक युद्धों के लिए एक प्रस्तावना हो सकते हैं।
- बढ़ता राष्ट्रवाद और अधिनायकवाद: कई देशों में राष्ट्रवाद की लहर, जिसमें विदेशी विरोधी भावनाएँ और अधिनायकवादी शासन का उदय शामिल है, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संवाद को कम कर रहा है। यह प्रवृत्ति अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानदंडों की अवहेलना को बढ़ावा दे सकती है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था कम स्थिर हो सकती है।
विश्व युद्ध को रोकने वाले कारक:
इन तमाम चिंताओं के बावजूद, कई ऐसे कारक भी हैं जो किसी बड़े विश्व युद्ध को रोकने में सहायक हो सकते हैं:
- परमाणु निवारक (Nuclear Deterrence): MAD सिद्धांत अभी भी प्रभावी है। परमाणु हथियारों के विनाशकारी परिणाम इतने स्पष्ट हैं कि कोई भी परमाणु शक्ति सीधे तौर पर किसी अन्य परमाणु शक्ति पर हमला करने का जोखिम नहीं उठाएगी, क्योंकि इससे दोनों पक्षों का सर्वनाश निश्चित है। यह एक कड़वी सच्चाई है, लेकिन यह वैश्विक संघर्ष को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- आर्थिक अंतर-निर्भरता (Economic Interdependence): आज की दुनिया में देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे से इतनी गहराई से जुड़े हुए हैं कि बड़े पैमाने पर युद्ध से सभी को भारी आर्थिक नुकसान होगा। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं, व्यापारिक संबंध और वित्तीय बाजार इतने जटिल हैं कि किसी भी बड़े सैन्य टकराव का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। कोई भी देश अपने आर्थिक हितों को इस तरह से जोखिम में नहीं डालना चाहेगा। यह एक शक्तिशाली निवारक है।
- कूटनीति और संवाद (Diplomacy and Dialogue): संयुक्त राष्ट्र, जी7, जी20, ब्रिक्स, और अन्य क्षेत्रीय संगठन अभी भी संवाद और कूटनीति के मंच प्रदान करते हैं। यूक्रेन युद्ध के बावजूद, पर्दे के पीछे कई राजनयिक प्रयास जारी हैं। देश अपने मतभेदों को सुलझाने और संघर्ष को बढ़ने से रोकने के लिए बातचीत के रास्ते तलाशते रहते हैं, क्योंकि युद्ध हमेशा अंतिम विकल्प होता है।
- वैश्विक नागरिक समाज और जनमत (Global Civil Society and Public Opinion): युद्ध के मानवीय और आर्थिक परिणामों के बारे में वैश्विक जनमत अब पहले से कहीं अधिक जागरूक है। नागरिक समाज संगठन और मानवाधिकार समूह संघर्षों को रोकने और शांति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लोकतांत्रिक देशों में, सरकारें युद्ध के लिए अपनी आबादी की सहमति के बिना बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई शुरू करने से पहले कई बार सोचेंगी।
- सैन्य गठबंधनों का संतुलन (Balance of Military Alliances): नाटो जैसे मजबूत सैन्य गठबंधन, भले ही एक पक्ष को उकसा सकते हैं, लेकिन वे दूसरे पक्ष के लिए एक निवारक के रूप में भी कार्य करते हैं। यह संतुलन किसी एक शक्ति को अत्यधिक हावी होने से रोकता है और बड़े पैमाने पर आक्रमण को अधिक जोखिम भरा बना देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानदंड (International Law and Norms): अंतर्राष्ट्रीय कानून, भले ही वे हमेशा पूरी तरह से लागू न हों, फिर भी राष्ट्रों के व्यवहार को नियंत्रित करने और कुछ हद तक जवाबदेही सुनिश्चित करने में एक भूमिका निभाते हैं। युद्ध अपराधों के लिए जवाबदेही का बढ़ता चलन भी राष्ट्रों को सैन्य कार्रवाई शुरू करने से पहले सोचने पर मजबूर करता है।

हालांकि, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पूरी तरह से खंडित नहीं हुई है। आर्थिक अंतर-निर्भरता, परमाणु हथियारों का निवारक प्रभाव, और कूटनीति के लिए निरंतर प्रयास अभी भी बड़ी बाधाएं प्रदान करते हैं। मानव जाति ने अतीत के युद्धों से कड़वे सबक सीखे हैं, और इन बातों को भूलना विनाशकारी होगा।
भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वैश्विक नेता और नागरिक किस मार्ग का चुनाव करते हैं। क्या हम सहयोग और संवाद को प्राथमिकता देंगे, या हम राष्ट्रवाद, आर्थिक संरक्षणवाद और सैन्य टकराव के प्रलोभन के आगे झुकेंगे? विवेकपूर्ण कूटनीति, अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान, और बहुपक्षीय संस्थानों को मजबूत करना ही इस अनिश्चित दौर में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के एकमात्र प्रभावी रास्ते हैं। विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़े होने की धारणा एक चेतावनी है, एक अलार्म है जो हमें अपनी साझा सुरक्षा के प्रति अधिक जागरूक और सक्रिय होने के लिए प्रेरित करता है। यह मानव जाति के लिए एक सामूहिक परीक्षा है, और इसका परिणाम हमारे सामूहिक निर्णयों पर निर्भर करेगा।
क्या हम इतिहास से सीखने और एक अधिक शांतिपूर्ण भविष्य का निर्माण करने में सफल होंगे? यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है।